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________________ धर्मवद्धन अन्धावली - -- जेसलगट गन्नराज, जिणचदपि गुणे जिहाज वदण संघ तिहा आव. वित्त साते क्षेत्र वाव होगा सघ आदर समज, आया बाग श्रीपूज हो। मोटो संघ मुलताणी. हित मरोटी हाजीवाणी हो |८|| जलालपुरे जस लीयो. गीतपुर उच वंचित मीधो हो । ए सघ यात्रा आया. श्रीपूज श्रीलब सवाया हो ॥६॥ सतरसे पैंतालीसें, माह सुदि तीर्ज मुजगीस हो। यात्रा करी जयकारी. श्री धर्ममी कहें, सुग्यकारी हो || कुशल करण जिन कुशल जी. दादोजी परसिद्ध देव रे लाल । परगट परता पूरव, शुद्ध मन करतां सेव रे लाल ॥१॥ पृथ्वी माहे परगड़ी, सिवीयाणो गढ सुखकार रे लाल । जेलागर मत्री जेहां, नामे जयतश्री नारि रे लाल ||२|| तेरे सैत्रीसैं समै, जायौ शुभ दिन जयकार रे लाल । संतालै सयम लीयो, सहु अथिर गिण्यौ संसार रे लाल ॥३॥ सदगुरु जिनचंदसूरिजी. सघले गुणे देखि सुघाट रेलाल । शुभ महोरत सत्योत्तरे, पाटण मे दीधो पाट रे लाल ||४|| गिरुवो खरतर गच्छ धणी, जिण शासन में जसवास रे लाल ! देरावर पुर दीपती, निव्यासीय स्वर्ग निवास रे लाल ||
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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