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गुरुदेव स्तवनादि
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सवैया
राजै थुभ ठौंर ठौर ऐसो देव नाहीं और,
दादो दादो नाम तें जगत यश गायो है। आपणे ही भाव आय पूजै लख लोक पाय,
प्यासनिक राण माझि पानी आन पायो है ।। वाट घाट शत्रु थाट हाट पुर पाटण में,
देह गेह' नेह सौं कुशल वरतायौ है।' धर्मसीह ध्यान धरै सेवका कुशल कर,
__ साचो श्री कुशल गुरु नाम यो कहायो है ॥११॥
(७) कुशल सूरि छप्पय
सरब शोभ गुण सकल, साधुपति आपै साता ।
सिरवंता सिरि सिखर, सील शुभ सीख विख्याता ।। सुद्ध चिन्त सुखकार, सूरि जिनकुशलसूर दुति ।
सेवहि सेवक कोड़ि, संव मत वात शैल पति ।। सोभंति अधिक सोभा जगति, सौम्यरूप सौजन्यवर । संघ नै सुख संपति दीयण, सदा सेव धर्मसी सधर ।।
( ८.) श्री जिन कुशल सूरीश्वरु गावो गच्छराया।
शुद्ध चित्त नित समरता सुख होय सवाया। श्री १॥
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