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२०२ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली अधिक उपाय कर अछ जी, सेंटण श्री भगवत । जोग जुडै नही जुगति सुजी, ग्वरीग रहै मन ग्यन ॥ है।। अमन जाणी आपणौ जी, मेली दे महाराज। तुम मिलिया विण अमतणा जी. किम करि फलिन्य काज || पाय तुम्हारा परमीयं जी. दोलति हतिण दीह । विजयहरय वछित फलं जी. ध्यान धरे धर्मसीह ।।८।।
गाँडो पार्ता स्तवन आज भलै दिन उगी जी, अधिक धरम उदै । प्रगट मनोरथ पूगो जी अधिक धरम उदें । पास जी नो दरसण पायो जी अधिक धरम उदै ॥ १ ॥ एवं पाचम आर जी अधिक वेवीसम जिन तार जी । अ०। देव इसौ नहीं दूजो जी अधिके पास जिनेसर पूजो जी ॥२॥ गुण गौडी ना गावोजी अ०, नरक निगौ नावो जी अ०। भावना मन शुद्ध भावी जी अ०, पंचम गति सुख
पावो जी अ०॥३॥ चाक मिथ्यामति छोड़ो जी अ०,जिनवर संहित जोडो जीअम जिन प्रतिमा जिन जेही जी अ०, कही इहा शका
केही जी अ०॥४ सुन्दर सूरति सौहे जी अ०, मूरति जन मन मोहे जी अ०। सुख विजयहरप सवाया जी अ०, गुण धर्मसी मुनि
गायाजी अ०॥