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श्रीफलोधी पार्श्व स्तवन
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पाम्यो में तुमने प्रभु हो, सेवु अवर न साम । सूरिज उगै साहिवा हो, केहो दीपक काम ॥३॥ जि० सु०॥ सवक नै तु सासता हो, ये छै वछित देव तौ सेवे छै ते भणी हो नर नारी नितमेव ॥४॥ जि० सु०॥ चूकी हु तुझ चाकरी हो, इतरा दिवस अयाण । गुनही तेह रखे गिणो हो, मोटा होइ महिराण ॥५॥ जि० सु०॥ मो उपरि पिण करि मया हो, आपो सुक्ख अछेह । सगले रूखे सारिखा हो, महियल वरसै मेह ॥ ६ ।। जि० सु०॥ त्रिकरण शुद्ध इण ताहरौ हो, एकज छै आधार । करज्यो तुम धर्मसी कहै हो, अवसर नौ उपगार ॥७॥ जिप्सुक
श्री फलोधी पार्श स्तवन
सुगुण सुज्ञानी स्वामि ने जी, स्यु कहियइ समझाइ । पण प्रभु सुविनती पच जी, नेट ए काम न थाइ ॥ १ ॥
परम प्रभु सुण फलवधिपुर स्वामि । साहिब हीय. मुझ सही जी, नित ही तुम्हारौ नाम ॥२॥ आवंता सहीया अम्हे जी, सर तावड़ त्रिष भूख । तुम्ह दरसण दीठो तरै जी, दूर गया सहु दुख ॥ ३ ॥ मन मोहन तुम्ह सुमिल्या जी, उपजे सुख मुझ अग । आवै मन माहे इसी जी, सही न छोडु सग ॥ ४ ॥ परदेसे पिण प्रीतड़ी जी, अधिकी दिन दिन एह । -मन तुम पासे मोहियो जी, दूर रहै छै देह ।। ५।