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गौडी पार्श्व स्तवन
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गौडी पार्श्व स्तवन राग-मल्हार
मरति मन नी मोहनी सखि सुन्दर अति सुखदाय । नयन चपल है निरखिवा, सखी भ्रमर ज्यु कमल लोभाय रे ।। दीठा हिज आवे दाय रे, कीधी तकनीर न काय रे । जोता सगला दुख जाय रे, थिर मन ना वछित थाय रे ॥१॥ मुनै प्यारो लागे पास जी ।। कुण वीजा नी हर को सखी, प्रसु ए समरथ पामि । हाथ रतन आयौ हिवे सखी, काच तणौ स्यो काम रे। नित समरू एहनो नाम रे, सह वाते समरथ स्वाम रे। हिव पुगी हिया नी हाम रे, औहिज मुझ आतमरामरे ।२। मु० स्वामि कल्पतरू सारिखौ सखी, बीजा बावल वोर । मनवछित दायक मिल्यो सखी, न करु अवर निहोर रे॥ दिल बाध्यो इण विण डोर रे, मेहा नै चाहे मोर रे। चंदा ने जेम चकोर रे, जिन सु मन लागो जोर रे ॥३॥ मु नै० कमल कमल चढती कला सखी, सोहे रूप सुरंग । एहन रूपनी ओपमा सखी, आबि न सके अग रे। उलसै मिलवा नै अंग रे, सही छोडण न करू सगरे । एहवौं मन मे उच्छरग रे, अविहड मुझप्रीति अभग रे ।४|मुनै० हुंस घणी मिलवा हुंती सखी मन माहि नितमेव रे। ते साहिब मिलीया तरे सखी वहु हित पग गहुं वेव रे ॥