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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
मगसिर मासि गामातरै मगसिर हुआ लोग । हु पिण छोडी मग सिरनी हिवें लेस्यु जोग । धरै सहु निज मंदिर में खल खेत्र ना धान । हूं पिण धरिस निश्चल मन मे नेमि ध्यान |६|| पोस मे ओस पड़े निस रूढन कर वनराय । दोस विना पिट रोस करें ते सोस ज थाय । धंहरि पडय अथाह ते विरहानल नो धम। वैगा जावो कोइ पिघलावी प्रिय मन मम || माह मैं माहट माड्यो मेह ते आहट रूस । तौ पिण माहरॆ नाह न पूरी माहरी हुस । जो कोई आइ वधाइ छ आयौ पति जदुनाथ । नाथ धरू इक नाक नी आपु सगली आथि ।।८।। फागुन फरहरै वात प्रभात नौ सीत अपार। नाह सु फाग रमें बहु राग सुहागणि नारि। चंग अनै मुख चग बजावै उडावै गुलाल । लालन जे तजी ललना तिण को कवण हवाल || जे तरू झाड़िया मोर्या ते तरु चेतर मास । वास सुवास प्रकासीय मधु करै रे विलास । बोले रे कागा आगा जागा वेसीरे ऊंच। पायुपीउ तौ तुझ भरावु चुर मैं चूंच ॥१०॥ मौरीय दाख वैसाखै पसरीय वेल प्रलंव । ऊ चिय साख विलंथिय, कोयल कुहकै अब । भौग● रवि सक्रात बसत मे मीन नैं मेख । तो पिण मुझ पीउ तजि गयौ इण मे मीन न मेख ।।११।। जल कर सीतल हीयतल जेठ मै ए ठहराय ।