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नैमि राजुल बारहमासा सखी री आयो अव मास असाढ़ो,
कालाहणि ऊंची काढो । वालंम हित बन्धन वाढ़ो,
वैरागै मन कियौ गाढो हो लाल ।रा०१२ । सखी री मिलि अरज करत है आली,
कहा वात करत है काली । नवली कोइ कुमर निहाली,
तुम परणावा ततकाली हो लाल । रा०१३ । सखी री अव राजुल बोली एमौ,
इण भव मुझ प्रीतम नेमो । दूजी परणण अब नियमों,
न तजु नवभव को प्रेमौ हो लाल ॥१४॥ सखी री योगी नहीं नेम सौ कोई,
राजल सम नारि न होइ । संसारी दुख सब खोई,
सिवपुरी सुख विलसे दोइ हो लाल रा० १५।। सखी री मन धारे बारेमासा,
___ आणौ वैराग उलासा । गुरू विजयहरष जस वासा,
वधतधर्मशील विलासा हो लाल ।।१।।