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धर्मवद्धन ग्रन्थावली सखी री करसणीयां फलियो काती, निपजी सब खेती पाती। हिल मिलि सब करत है बाती,
पीड विणु मोहि फाटत छाती हो लाल ।४। सखी री अव मिगसर महिनौ आयौ, सब ही की नेह सवायो। भोगीजन के मन भायौ,
गयौ छोरि शिवादे को जायौ हो लाल । रा०५ ।। सखी री आयौ महिनो अब पोसो, रगै रमै सहु तजि रोसो। दीनी मुझ जादव दोषो,
सबलौ तिण कारणि सोसो हो लाल ॥रा०६॥ सखी री अति शीत परतु है माहे, सव सोवत माहोमाहे । देही मुझ विरह की दाहै,
न मिट विनु आय नाहे हो लाल रा०७१ सखी री फागुण पकवान नैं पोलीभरि लाल गुलाल की झोली। खैले नर नारी की टोली,
पिउ विन में न रमें होली होलाल रा०८। सखी री सब मिलि नर नारी संतो, चतै धरि हरष हसतौ। खैलें अति ही उलसतो,
वालंभ विनु कैसो वसंतौ हो लाल । रा०६ । सखी री कोइल बोले वैशाख, भरता करता बैसाखें । पहिले कीनो आसाखें,
दू® आगै अव साखै हो लाल । रा० १०॥ सखी री जल शीतल पीजै जेठो, पीउ नायौ अजहु घेठौ । जाण्यौ कुण करिहै वेठी,
नाणी मुझ नजरा हेठौ हो लाल रा०११॥