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________________ नेमि राजुल बारहमासा १८७ ॥ नेमि राजिमती बारहमासा ॥ दिल शुद्ध प्रणमं नेमि जिनेसर परमदयाल, रोक्या जीव ते मूक्या तोरण थी रथ वाल । राजिमति सती नेह वश किय विविध विलाप, तो पिण तसु तणु नाइ सक्यो विरहानल ताप ॥१॥ श्रावण मास में विरहणि जामनी जाम न जात, सजि आडंबर जबर दामिणी मिले वरसात। मुझ वर गयो हरिणाखी नाखी दीध निरास, विल विल राजुल आखीय भरि भरि नाखी निरास ।।२।। भादव मे गयो यादव मुझ हिया दव लाय । पावस जल पड़ताल प. पिण ते न बुझाय । मा. मोर भिंगोर कर पपियो पीउ पीउ । पीर विरहै थइ पीड़ ते जाणे माहरी जीव ॥३॥ आलू मे सासूनी अंगज ते गया अग जलाय । चद नी चादणी देखत चौ गुणी पीड़ज थाय । निरमल सरवर भरीया नीझरणे झरै नीर । नयणा नीर तिये पिण माड्यौ जिण सुसीर ॥४॥ माती खेती पाती नीपनी काती मास ।। कातीय विरहणि छाती मे काती वहै नहीं जास । दीप दीवालीय वलिय सुहालिय नैं पकवान । खलक रचे पिण मुझ नैं न रूचै खान नै पान ॥५
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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