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नेमि राजुल बारहमासा
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॥ नेमि राजिमती बारहमासा ॥
दिल शुद्ध प्रणमं नेमि जिनेसर परमदयाल,
रोक्या जीव ते मूक्या तोरण थी रथ वाल । राजिमति सती नेह वश किय विविध विलाप,
तो पिण तसु तणु नाइ सक्यो विरहानल ताप ॥१॥ श्रावण मास में विरहणि जामनी जाम न जात,
सजि आडंबर जबर दामिणी मिले वरसात। मुझ वर गयो हरिणाखी नाखी दीध निरास, विल विल राजुल आखीय भरि भरि नाखी निरास ।।२।।
भादव मे गयो यादव मुझ हिया दव लाय । पावस जल पड़ताल प. पिण ते न बुझाय । मा. मोर भिंगोर कर पपियो पीउ पीउ । पीर विरहै थइ पीड़ ते जाणे माहरी जीव ॥३॥ आलू मे सासूनी अंगज ते गया अग जलाय । चद नी चादणी देखत चौ गुणी पीड़ज थाय । निरमल सरवर भरीया नीझरणे झरै नीर । नयणा नीर तिये पिण माड्यौ जिण सुसीर ॥४॥ माती खेती पाती नीपनी काती मास ।। कातीय विरहणि छाती मे काती वहै नहीं जास । दीप दीवालीय वलिय सुहालिय नैं पकवान । खलक रचे पिण मुझ नैं न रूचै खान नै पान ॥५