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नेमि राजुल बारहमासा
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जो ठिक जोतपी ते कहौ कदि मिलै जेठ को भाय । यादव कुल ना सेठ नै जेठ कहौ समझाय । नाणी ठे नै हेठते मोमैं कवण अन्याय ॥१२॥ वलीय कौलाहणि काढि आसाढ़ मे वलियो मेह । नेमजी नाह विसार्यो (न सार्यो) नव भव नेह । मुझ नै विलखत छोड़ी वहि गया बारै मास । पिण हु न तजु एह नैं बसिस्या एकण वास ॥१३।। धन धन राजल साज ले दीक्षा नौ तजि धाम । केवल लहिन पहिली हिज पहुंती शिव ठाम । जोगीसर नेमीसर सिव सुख विलसै सार । श्री धर्मसीह कहै ध्यान धस्या सुख है श्रीकार ॥१४॥
॥ नेमि राजिमती वारहमासा ॥ सखी री ऋतु आइ सावण की, घुररंत घटा बहु धन की। बानी सुनि सुनि पपीहनि की,
निशि जाय क्यू बिरहनि की हो लाल ॥१॥ राजुल वालभ जपती, इकतारी नेमि सुकरती। धन सील रतन नै धरती, तिम विरह करि तनु तपती हो लाल । सखी री भादु मैं भर बरसाला, खलकै परनाल नै खाला। बिजुरी चमकत विकराला,
जादु विनु मोहि जंजाला हो लाल । रा०२।। सखी री आसू सब आसा धरीया, निरमल जल सुसर भरीया। रात्यौं शशि किरण पसरीया,
पिउ विनु क्यों जात है घरीया हो लाल ३।