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धुलेवा ऋषभदेव छन्द दुर हु देवल शोभा देख, वटै वाह वाह प्रकाश विशेष । रह्यौ रवि भूमि विमान रचेव, दीयें सुख वछित ऋषभदेव १५ तिलक्का तोरण धोरण तत, भला चित्त चोरण कोरण मंत। वहु हुं वखाण किताक अवेव, दीयै सुख वछित ऋषभदेव ।१६। जिणेसर विंब झिगामिग ज्योति, अहोरति आठ जाम उदोत । विजोडी देहरी बावन वेव, दीये सुख वंछित ऋषभदेव ॥१७॥ घसीजै केसर चदन घोल, रची पूज सदा रग रोल। अवल्ले फूले धूप उखेव, दीयें सुख वंछित ऋषभदेव ॥१८॥ जाणौं तिण वेला जोवों जाय, भला केइ जात्री आइ भराय । हजारै गानै लाभे हेव, दीयें सुख वछित ऋषभदेव ।। १६ रहै नहीं नामै कोई रोग, वली सहु जायै सोग वियोग । सदा हुवै भोग संयोग सबेव, दीयै सुख वछित ऋपभदेव ॥२०॥ सही सहु तीरथ में सिरदार, इणै इहरत्त परत्त उधार । टली अन्तराय भली सहु टेव, दीयें सुख वंछित ऋषभदेव ॥२१॥
कलश
अलग टली अतराय, प्रगट सफली पुन्याइ । गणधर गुरू गच्छराज, सूरि जिणचन्द सवाइ। गच्छ खरत्तर गहगाट संवत सतरै से सट्ठिम, (१७६०) वसत ऋते वैसाख, अवल उजवाली अट्ठम ।। जातरा कीध सखरी जुगति, वडा साध साथै वडिम । सुख 'विजयहरष जिण सानिधे, आखै श्रीधर्मसीह इम ।। २२ ॥