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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
नमैं नर नारी सको नितमेव,
दियें सुख वंछित ऋपभदेव ॥७॥ पूरै प्रभु आस सदा परतख,
वढा सुरकुंभ किना सुरवृक्ष । बहु जिण दान दिपाया वेव,
दिये सुख वछित ऋपभदेव ॥ ८॥ छती छती देखि पवन छतीस,
जपे सह ध्यावं जेम जतीस । भजे इक चित्त लह्यो जिण भव,
दियै सुख वंछित ऋषभदेव ॥६॥ खलका मालम देश खडग्ग,
जप ए तीरथ तेम अडिग । धुनो धन धन्नहि गाम धुलेव,
__ दियँ सुख वछित ऋषभदेव ॥ १० ॥ उदपुर हुती कोस अढार, ए ओ वाट विपम अपार , सल - गात्र सजैव, दिये सुख वछित ऋपभदेव ॥ ११ ॥ पुलै पगवट्ट उजाड पहाड़, दहुं दिशि केइ कराड़ दराड़, भराड़ झागी राझाड मुकेव, दियं सुख वंछित ऋषभदेव ॥१२॥ पुढाणा खाला नाला खाड, चिहुं दिसि ताकै चोर चराड़। निकेवल जात्र्या नाम न लेव, दियै सुख वंछित ऋषभदेव ।।१३।। किता केड मारग माहि कलेस, आवै केइ यात्री लोक अशेप । सरै छै काम तिया सतमेव, दीये सुख वंछित ऋपभदेव ॥१४॥