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________________ १७४ - शत्रुञ्जय तीर्थ स्तवन सिद्धवड़हि सदाई जी, दीप सुर दाई। प्रगटी पुण्याई जी, जिण यात्रा पाई ॥ १३ ॥ सहिनाण संभार्या जी, श्री धर्मसी धार्या । जिण आइ जुहार्या जी, तिण आतम तार्या ॥ १४ ।। शत्र जय गीत सरव पूरब सुकृत तीये किया सफ्ल, __ लाभ सहु लाभ में अधिक लीया । सफल सहु तीरथा सिरे सैंत्रुज री, यात्रा कीधी तिया धन्न जीया ॥१॥ सुजस परकासता, मिले सघ सासता, शास्त्र सासता विरुद सुणिजे। ऋषभ जिणराज पुडरीक गिरि राजीयो, __ भेटिया सार अवतार भणिजे ॥२॥ काकरै काकरें कोडि कोडी किता, साधु शुभ ध्यान इण थान सीधा । साच सिद्धक्षेत्र शुद्ध चेत सु सेवता, कीध दरसण नयन सफल वीधा ॥३॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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