________________
१७८
धर्मवद्धन ग्रन्थावली नयणे करि निरखो जी, हियडै वलि हरखौ । सत्रु जय सरीखो जी, पुहवि न को परखो ।।३।। मद मच्छर छोड़ी जी, जिन सु मन जोडी। केइ सीधा कोडी जी, ठावा इण ठोड़ी ।। ४ ।। सूत्र सिद्धान्ते जी, भाख्यो भगवते । अनादि अनंते जी, भटङ तजि भ्रते ॥५॥ भवसमुद्र तिराज जी, परवत नी पाजे । जाण्यो चढीय जिहाजै जी, सिवपुर ने साजे ॥३॥ सिद्धक्षेत्र समीप जी, पाप न को छी । देहरा अति दीप जी, जग चखने जीपै ।। ७ ।। जिण पहिलउ जाणी जी, प्रतिमा पहिचाणी । आसति बहु आणी जी, पूजौ भवि प्राणी ।।८।। बावन देहरिया जी, परिदखणा परिया । वंद त्रिण वरिया जी, धर्म ध्यानइ धरियां ॥६॥ रायणि तलि पगला जी, आदि तणा अगला । संघ वादै सगला जी, धरम तणा ढिगला ॥ १० ॥ शिववारी दिस ही जी, वलि खरतरवमही। अदबुद ऊलसही जी, सबला विव सही ॥ ११ ॥ सूर कुंड सवाइ जी, देख्या सुखदाइ । चेलणा' तलाइ जी, उलकाझूल आई ॥ १२ ॥
५ चंदणा