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ऋषभदेव स्तवन
ढाल---सफल ससारनी त्रिभुवन नायक ऋषभ जिन ताहरौ,
सुजस साभलि मन ऊमह्यो माहरो। तारण तरण नहीं को तो सारीखो,
पुहवि सहु सोभि ने ए लह्यौ पारिखौ ॥२॥ वलि सुणौ आदिजी माहरी वीनति,
तुम्ह सेवा तिका लहीय निधि तीन ती। त्रिकरण सुद्ध इकतार तोसुं कीयौ,
हिव विशेष करी हरखियौ मुझ हियो ।।२।। भगवन माहरै तुहिज साहिब भलौ,
__ तुं किम लेखवै नहीय मोसु तलौ ॥ विरुद्ध धारो विया चाल बीजी चलो।
पूछस्य हुँ पिण जाव पकड़ी पलौ ॥३॥
"धरिय सहुनी दया प्रथम महाव्रत धरौ,
अरि हणी नाम अरिहंत किम आढरी। व्रत बीयौ धी मृषावाट तजियौ वली,
तुहिज कहै बात अणदीठ अणसांभली ।।४।। दाखवै काइ लीजै नहीं अणदिय,
लालची तु हिज जिण तिण तणा गुण लियें ।