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नवकार छद
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पति कीध विचार जिन मति नारं, श्रीमति मारवीय धार । घटथी पुफभारं आणि अवारं, तिय किय घट कर संचारं ।। फीटी अहि फार, हुवउ हार, धन ए जिनमत जप धारं ।।साणा वलि विणठी वार साझ सवारं, दडाकार कातार । शात्रव सिरकारं सिह शिकार, दावोढार दरवार । गिण वंठि वेगार कारागार जय सहु ठामे जयकार |सहु०८ विणजे व्यापार वलि विवहार, लक्ष्मी आप वहै लारं । परिवल परिवार पुण्य प्रकार, बोले बहु जस बाजार ॥ वाई इम वार कुशल करार, करे सहु उपरि कण वारं ॥सहुनाह इम बहु अधिकारं गुण विस्तारं, पामें कहता कुण पार । धुरि ॐ ही धारं सौ हजार, जपता हुवै जय जेतार ।। पूरव दस च्यार सूत्रे सार, दोउ भवसुख दातार ।।सहु०॥१०॥ नित चित धरि नवकार, जप्या दुख दूरे जावे । नित चित धरि नवकार, परवल संपति सुख पावै । नित चित धरि नवकार, शत्रु भय न गिणं साकौ । नित चित धरि नवकार, वाल पिण न हुवे बाकौ । तिम रोग शोक चिन्ता टलै, सकट जावै दूर सही। हुवै सकल सुख विजयहरख, कवि धर्मशी उवझाय कही ।।११॥