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धर्मवद्धन ग्रन्थावली
अन्तर वहि तप जप आरा वे, जोर मदन की फौज जरी। बानी हनी ज्ञान गुरजा स, ममता पुरजा होइ परी ॥२॥ अनुभव वल सु भौदल भागे, फाल फतह करी फौज फिरी। कहइ धर्मशी मुनिसुव्रत दाना, देत सदाइ मुगतिपुरी ॥३॥
२१. श्री नमि जिन स्तवन
राग--श्री राग नित नित नमिजिन चरण नमुं। मनहि मनोरथ उपजत मेरे, भमर होइ प्रभु पास भमु ॥१॥ न नमु और कौ तव सब निंदा, खलक करौ तोइ वचन खमु। लालच लोस किही नही लागु, राति दिवस जिन रंग रमू ।।२।। गुण गण गान इन्हों के गावु, दुर्गति के दुख दूर गमू। श्री धर्मशी कहै इण सें राचु, दूजा इन्द्रिय विपय दमू॥३॥
२२. श्री नेमिनाथ स्तवन
राग-वसत करणी नेमिकी, काहू और न कीनी जाय । क०
तरुण वय परणी नहीं हो, राजिमती यदुराय ॥१॥ जीव पुकार सुणी जिणे हो, करुणा मन परिणाय । गज रथ तजके पुनि गयौ हो, शिलाग रथ सुखदाय ॥२॥ ममता वादी-मूकि के हो, सुमता ली समझाय । सिद्ध वधु विलसै सदा हो, प्रणमैं धरमसी पाय ॥३॥