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चौवीसी
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सुणौ अरनाथ अरदास सेवक तणी,
स्वामी कही एह धर्म शीख साची । तेह पलिस्य नहीं तोइ तरिसु तिणे,
राज री भगति में रहिस राची ॥३॥
१६. श्री मल्लिनाथ स्तवन
राग-सिन्धु
मल्लि जिनेसर तु महामल्ल, हणिया मोह मदन हैं ठल्ल । पिता तणी पिण चिन्ता पल्ल, सगला दूर किया अरि सल्ल ||२|| अहो अहो ताहरी अथग अकल्ल, आपणै रुप रचाइ अवल्ल । करि जीमण इक एक कवल्ल, भरय तिहा भोजन भल भल्ल ॥२॥ आपणा जे अरि मित्र असल्ल, एकान्ते धरि एक एकल्ल। जुगति देखाई तें भल जल्ल, दुगंध नासै भूत दहल्ल ॥ ३ ॥ तिण सु अपणइ केहो तल्ल, चारित्र लीधौ चोखी चल्ल । अरिहन्त पद धर्म शील अदल्ल, पाली पहुतो मुगति महल्ल॥४॥
२०. श्री मुनिसुव्रत्त जिन स्तवन
राग-जैतश्री
सब मे अधिकी रे याकी जैतश्री, काहू और न होड करी ॥सका आठों अंग जोग, हैं, उद्धत मार्यो मोह अरी ॥१॥..