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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
६ श्री सुविधि जिन स्तवन ।
राग-प्रासा
कबहु में सुविवि को ध्यान न कीनउ । आरत रौद्र विचार अहोनिश,
दुर्गतिघर करिवै घर दीनौ ॥ १॥ दीप ज्यु औरनि पंथ दिखायौ,
आपहि लाग रह्यो तम लीनौ । मेरो तन धन करि सुख मान्यौ,
मणि परखी पिण अन्तर मीनौ ।।२।। परमारथ पथ नाहिं पिछाण्यो,
__ स्वारथ अपणो मानि सगीनौ । मुविधि कही धर्म सीख न धारी,
निकल गयो नर जन्म नगीनौ ॥३॥ १० श्री शीतलनाथ स्तवन ।
राग--कान्हरौ सुखदाइ शीतल स्वामी रे, शुभ सुमता रस विशरामी रे । उपकारी गुण अभिरामी रे, नमीय एहने शिर नामी रे ॥ १॥
के क्रोवी कपटी कामी रे, खल केइ केहि में खामी रे। __ अज्ञानी अगुण अथामी रे, कर तनु सेवा किण कामी रे ॥२॥
जिनवर जग अन्तर्यामी रे, गुण गावै ते शिवगामी रे। ध्याचे वर्मशी धर्म धामी रे, पुण्ये प्रभु सेवा पामी रे ।।३।।