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• चौवीसी
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११ श्री श्रेयास जिन स्तवन
राग--सामेरी
केवल वाला रे केवल वाला, कोउ मिलि है केवल वाला। ताको पूछ कब तूटेगा, जन्म मरण दुख जाला ।। के० ॥२॥ भव २ ममते पार न पायो, मोह रहट की माला । पावु ज्ञानी तो अब पूछु , कब यह मिटय कशाला ॥२॥ धन अपने की शोध न धारी, मद आठ मतवाला । सो दिन सफल वचन सद्गुरु के, पीयु अमृत प्याला ||३|| श्रेय भयौ लह्यौ श्रेयास साहिब, आया समकित आला। सब सुख कारण अनुभव सानिधि, सु धर्मशील संभाला ॥४॥
१२ श्री वासुपुज्य जिन स्तवन
वाह वाह वासुपुज्य नी वाणी, वासव पण आप वखाणी। आवइ भावइ आफाणी, उवारणा लेइ इन्द्र इन्द्राणी रे ॥१॥ मधुर ध्वनि गाज मंडाणी, योजन लगि सर्व सुणाणी रे। सुर नर तिरि सहु समझाणी, अतिशय पैंत्रीस आणी रे ॥२॥ वैर वाता सहु विसराणी, पशु ए पिण प्रीति पिछाणी रे। धर्मशील सूधा सचाणी, शिवरमणी तणी सहनाणी रे ॥३॥