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( १० ) ५. धरती की ममता भोगवी किते भू किता भोगवसी माहरी माहरी करइ मरें।
ठी तजी पातला ऊपरि, कृकर मिलि मिलि कलह कर ॥ १॥ धपटि धरणि कितेइ धु सी, धरि अपणाइत के ध्र वे। धोवा तणी सिला परि धोवी, ह पति हूं पति कर हुबै ॥२॥ इण इल किया किता पति आर्ग, परतिख किता किता परपूठ । वसुधा प्रगट दीसती वेश्या, भूझ भूप भुजंग सुझूठ ॥३॥ पातल सिला वेश्या पृथ्वी, इण च्यारा री रीत इसी। ममता कर मर सो मूरख, कहै ध्रमसी धणियाप किसी ॥४॥
६. राष्ट्रवीर शिवाजी सकति काइ साधना किना निज भुज सकति.. बड़ा गढ धूणिया वीर वाकै। अवर उमराव कुण आइ साम्ही अड़े, सिवा री धाक पातिसाह साके ।। १ ।।