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( ११ ) खसर करता तिके असुर सहु खूदिया, जीविया तिके त्रिणौ लेहि जीहै। सबद आवाज सिवराज री साभल , बिली जिम दिली रो धणी बीहै ॥२॥ सहर देखे दिली मिले पतिसाह सू , खलक देखत सिवो नाम खारै। आवियो वले कुसले. दले आप रे। हाथ घसि रह्यौ हजरत्ति हार ।। ३ ।। कहर म्लेच्छा शहर डहर कंद काटिवा, लहर दरियाव निज धरम लोचै । हिंदुऔ राव आइ दिली लेसी हिवै,
सवल मन माहि सुलताण सोचे ।। ४ ॥ उपर कविवर धर्मवर्द्धन के ६ डिंगल गीत इसलिए प्रस्तुत किए गए हैं कि इनके द्वारा विषयगत विविधता प्रकट हो सके। कविवर ने विविध विषयो मे डिंगलगीत रच कर इस शैली का महत्त्व प्रकाशित किया है। डिंगलगीतो का विपय केवल युद्धवर्णन अथवा विरूदगान तक ही सीमित नहीं है। इस मे देवस्तुति, प्रकृति वर्णन, निर्वेद एव राष्ट्रीयता आदि तत्त्वो का भी सम्यक् सन्निवेश दृष्टिगोचर होता है। कविवर धर्मवर्द्धन के गीतो की डिंगल भी प्रसादगुण धारण किए हुए है। यह इनकी अपनी विशेषता है।
कविवर धर्मवर्द्धन ने अनेक गेय पदो की भी रचना की है। ये पद अधिकाश मे औपदेशिक अथवा स्तवन रूप है