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________________ ( ६ ) करण उपगार ससार तारण कलू., आप अवतार जगदीस आयौ । धनो धन जैन धर्म सीम धारणधणी, जगतगुर भले महावीर जायौ ।। ४ ।। ४. शत्रुञ्जय महिमा सरव पूरब सुकृत तीये किया सफल, लाभ सहु लाभ में अधिक लीया। सफल सहु तीरथा सिरे र्सेत्रुज री, यात्रा कीधी तिया धन्न जीया ।। १ ।। सुजस परकासता मिले सघ सासता, शास्त्रे सासता विरुद सुणिजे] ऋपभ जिणराज पुडरीक गिरि राजीयो, भेटिया सार अवतार भणिजे ॥ २ ॥ काकरै काकर कोडि कोडी किता, साधु शुभ ध्यान इण थान सीधा । साच सिद्धक्षेत्र शुद्ध चेत सु सेवता, कीध दरसण नयनसफल कीधा ।।३॥ तासु दुरगति न ह नरक त्रियंच री, सुगति सुर नर लहै सुगति सारी। विमल आतम तिको विमलगिरि निरखसी धनो धन श्री धर्मसील धारी ।।४।
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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