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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
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आगला भूप श्री अजीतसिंह आगला,
डागला दौड़ज्यू दिली कति दूर । भागलै भुजा बल खला करि खागले,
सागलैं कीध जस सूर हर सूर ।।३।। खीजीया यवन ल्यै जीजीया खूटिवे,
खेचला वीजीया रैत खाखी । प्राण जोधाण रै पाजीया पी जीया,
रेख दूर्गदास राठौड़ राखी ||४||
गीत श्री शिवाजी रो श्री सूरत मध्य कह्यौ स० १७३३ आसाढ माहे । सकति काइ साधना, किना निज भुज सकति,
वड़ा गढ़ धूणिया वीर वाकै । अवर उमराउ कुण आइ साम्ही अडे,
सिवारी धाक पातिसाह साके ।। १ ।। खसर करतां तिके असर सहु टुंदिया,
जीविया तिके त्रिणौ लेहि जीहै । शब्द आवाज सिवराज री साभले,
विली जिम दिल्ली रो धणी वीहे ।। सहर देखे दिली मिले पतिसाहस,
___ खलक देखत सिवौ नाम खारै। आवियो वले कुसले दले आपरे,
हाथ घसि रह्यौ हजरत्ति हारै ॥३॥