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ऐतिहासिक व्यक्ति वर्णन
१४७ असुर सुबीहत इन्द्र आलोचि नै,
भीर नैं तेडियो जलू भाइ ॥१॥ जाइ सुरलोक मैं अमल कीचौ जसु,
असुर सहु नाति मृतलोक आया। कसर सहु आपणी मूलगी काढ़िवा,
__ लागते जोर जजाल लाया ॥२॥ लोक सगला कन्है जीजीया लीजिये,
देहरा ठाम महिजीद दीसै। थरहर गाय इण राव इन्द्रसी थका,
हियो इण राज सु केम हीसै ॥३॥ खुदिजै परज चिहु पाखती खोसिजें,
सहु कहै लोक इम केम सरसी। धरौ मन धीर सुख हुसी हिंदू धरम,
कुअर जसराज रा राज करसी ।४!
कवित्त दुर्गादासजी का (महा) मौड सुरधर तणा खला दल मौडता,
दौड पतिसाह सु कर दावा। रोड़ रमता थका चौड रिम्म चूरता,
ठौड ही ठौड राठौड ठावा ॥१॥ छात ढलतें जसू हुइ नाका छिली,
साक -तजि साह सु कर साका । दाव पाला कीया सुजस डाका दिया,
जोध वाका करै नाम जाका ॥२॥