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वैद्यक विद्या
१४१ नेन पीड अति ही जन औषध औसरे,
दो लवणे द्यौ दंभ, तुरत पीड़ा हरै। अग्नि क्रिया के श्लोक वागभट ग्रन्थ में,
परिहा, कही भाषा सुसरल वचन के पंथ मै ॥२०॥ सतरे चालीस विजयदशमी दिन,
गच्छ खरतर जगि जीत सर्व विद्या जिनै। विजयहर्प विद्यमान शिष्य तिनके सही,
परिहा, कवि धर्मसी उपगारै दभक्रिया कही ।।२१।।
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