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वैद्यक विद्या (डम क्रिया)
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शंकर गणपति सरस्वती, प्रणमु सब सुखकार । वैद्यनिके उपकार कुं, अग्नि कर्म कहुं सार ॥१॥ जो चरकादिक ग्रन्थ में, विविध कह्यौ विस्तार । वागभट्ट ते मे कहु, भापाबंध प्रकार ॥२॥
रोग सख्या सग्रह ताप सन्निपात जाणी अतीसार सग्रहाणि,
फीही विध राल पाडु गोला सूल खैन है। हीया रोग सास खास रुधिर प्रवाह रूप,
सीस पीड रोग अरू जेतें रोग नैन है॥ और उन्मादवात कटीवात सीत अंग,
मृगीवात कंपवात सोफोदर अन है। जलोदर अंडवृद्धि धनुप चोवीस रोग, ताकि कहै दभक्रिया वंद्य ग्रन्थ वेन है ।।३।।
दोहा संनिपात ज्वर नाश कु, डभ वतावै च्यार। प्रथम तालव दीजिये, दंभ गोल परकार ॥ ४ ॥ दूजो लंबो ग्रीव परि, जहा धरिज जोत । दो लवणे द्यौ वतला, च्यारे इहि विधि होत ॥५॥