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वैद्यक विद्या
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अतीसार ग्रहणी विर्षे, दम बतावे पच । नाभि चिहुं दिसि च्यार दयौ, कूरम पद के सच ॥ ६ ॥ त्रय अंगुल फुनि नाभि तजि, अधोभाग शुभ ठाण । लंबो अगुल च्यार को, पचम डंभ प्रमाण ॥ ७॥
परिहा पूठि दशा सु आणि उदर कर सु ग्रहै, .
फीहा की जहा पीर आगुली अग्र है । दीजै तिहा दोइ डंभ एक एक उपरै,
परिहा, एहि विधि वैद सुजाण तुरत वेदन हरै ।। ८ ।। डभ तीन विध राल तहा विधि सु कर,
___ लाबो आगुल च्यार एक तिहि उपरै । दूजी हिरदौं मूल दंभ वत्तुल धरौ, ' परिहा, पूछ जहा बहु पीर, तहा धरि तीसरौ ॥ ६ ॥
चौपाई पाडु रोग सोफोदर सही, तीजो रोग जलोदर लहि । च्यारे डभ चिकित्सा जाणि, ज्युकीजै त्युकहु बखाणि ॥१०॥ हृदे मूल वत्तुल इक होड, दुहु कुखे लाबा दयौ दोइ । इक अगुल तजि नाभि प्रकार, चउथौ डंभ चूड़ी आकार ॥१२॥ फीहै जो विधि कहु बखाणि, गुलमरोग पिण सो विधि जाण । पेट सूल जो होइ अगाध, सूल डंभ ते नासे व्याध ॥१२॥ प्रबल होइ जब खैन प्रकार, बोली दभ क्रिया तहा बार। एक तालवै दीजै गोल, दूजौ ग्रीवा जोत्रं ओल ॥१३।।।