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प्रस्ताविक विविध सग्रह
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सनैया उपजी कुल शुद्ध पिता हनि के, फुनि शुद्ध भई करि दोप विलें । करि सग पितामह सुप्रसयौ, पित आप कुवारि कै खेल खिलें।। जग मित्र जिवाइ चरित्र वणाइ पवित्र भलै धर्मसील भिलै । कहि कौन सखी पित कैं पित सु , विछुरै दुरिकै फुनि जाइ मिली।
सवैया-तवीसा
चम्पक माझि चतुर्भुज राजत, कुंद मे आप मुकुद विराजै । केतकी माझि कल्याण वसैं नित, कूजकै कू च में केसव छाजै ॥ मालती माधौ मुरारी जु मोगरे, गुलाव गुपाल सुवास सुसाजै। कान्ह वसै कल्पतरु माझि, नरायण फुलनि हुं कु निवाऊँ ॥१॥ केतकी में केसव, कल्याण राइ केवरा मै,
कज मैं जसोद सुत कुद में विहारी है। । मालती मैं मुकुन्द मुरारि वास मोगरे,
गुलाब मे गुपाल लाल सौरभ सुधारी है । जूही मैं जगतपति कृपाल पारजात हु मे,
पाडल मे राजे प्रभु पर उपगारी है। चप मे चतुर्भुज चाहि चित्त चुभि रह्यो,
सेवत्री मे सीताराम स्याम सुखकारी है ॥२॥