________________
प्रस्ताविक विविध संग्रह
१२६
-
समस्या-सवैया तेईसा
तत्त की या धर्मसीख धरौजु, कहा बहु गल्ल कथा विस्तारौ । मोल न हूँ मणि की मणिहारीय, अमृत बिंद न कृपक खारौ ॥ चद उद्यौत करें सबहुं दिशि, तारक कोरि छतें ही अधारो। सारकी होडि कहा करै टार, सपूत घरी न कपूत जमारौ ||१|
समस्या-निसाणी घर जानकी सवैया इकतीसा आयौ जाको दूत जमदूत को सौं पौनपूत, या तो देखौ वावि की प्रसिद्धि लोक वानि की। कीनों उतपात पात, पात सौ आराम कारि, बैठो है आराम करि, कैसें 'लंक थान की। मदोदरी कहै राज, मदौ दरीखांनी: आज, धारौ वर्म सीख पैं न, धारी सीख आनि की। . कानि कानि फैली बात, कानि तैं न कही जात, , आनी बरि जानकी, निसाणी घरि जान की ॥ १ ॥