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प्रस्ताविक विविध संग्रह
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समस्या-योग, भोग पर रिण-देणो घणो लहणी न कछ,
गहणी घर मे कर एक छलौ है । इत भूतसौ पूत कुपात है तीय, .
कहा' कहि बात में जात ललौ है ।। नित गेह के नेह में देह दहै,
न गहै ध्रमसीख न तत्त तलौ है । नहिं जानत है चित मे इतनौ,
इण भोग हुते जति जोग भलौ है ॥१॥ कहै नाम अत्तीत अनीति धरावत,
पावत लोक अलोक गिलो है।' विह साव सौ वेप धरै बहु घेख,
अलेख कहै पें, अलेख ललौ है ।। न सरें जब काज गरें जु पर,
' झगरें बहु सु पकर जु पलो है। कही साध्यौ कहा इण जोग गहे,
इण जोगहु ते गृह भोग भलौ है ॥२॥
समस्या-चतुराई पर एक एक चातुरी सौ अकल नकल आनें,
सकल सयाने लोक सुनि के थगतु है।
२--कलहा, कलहि, बालत, जालत'