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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
सवैया–समस्या, हरिसिद्धि हस हरि यो न हस हनुमान हरौल किये चढे राम,
तयों निधि सनिधि लक ध्वसे । ऋरि रौद्र संग्राम लकेश कु मारि,
कियौ सुखवास की नास नसे ॥ शिव चिंत्यो त्रिलोक को कंटक सोऊ,
नमावती मो पद सीस दसे । उत दैत्य हसे उत देव हसे,
हरि सिद्धि हसे हर यौं न हसे ॥ १॥ अपणे भुज भार पहार उपारि,
गोवर्द्धन धार जो धार जसे । तिण माखण ले मटकी पटकी,
अपराध ते कौल के नाल कसे ॥ अब खोल दे गात जसोदह मात,
न माखन खाऊं न जाऊ नसे । उत दैत्य हसे उत देव हसे,
हर सिद्धि हसे हरि युन हसे ॥२॥