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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली मेरौ रूप तेरि नैन कहा तु कहत बैंन,
___आरसी मैं मुख देखौ मुख ही में आरसी ।। .
समस्या-वप केसे च्यार फल फूले ही रहतु है। अति ही अनूप नाभि रूप कूप उपरितै,
____ मोतिनि की माला घटमालासी वहतु है। नूर नीर ऊर पूर रभ थंभ बाहुलता,
__ आनन कमल स्वास सौरभु गहतु है। नाक कीर भौंहि भीर आली की सुहाग वाग,
साचौकरि देख्यो है पैं धर्मसी कहतु है। आंखनि उरोजनिकी एती अधिकाइ पाइ,
चंप के से च्यार फूल फूले ही रहतु है ॥१॥
. सगस्या-ठाढे कुच देख गाढे प्राण अकुलात है । गोरी तेरी देखि गति दूर हु विसारि मति, .
- देखत न कैसे मन ठौर ठहराति है। चुंघट की ओट माझि नैननि सो चोट करे,
जाकै लागै सो तो लोट पोट होइ जाति है। सोनै सु सुधारे सारे आधे से उघारे भारे, काठ तौ चोगान के 'निसान से कहातु है। कहै धर्मसीह कसे ऊभै पोरीय से ऐसे , ठाढे कुच देखें गाडै प्राण अकुलात है ॥ १ ॥