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प्रस्ताविक विविध संग्रह १२५
समस्या-हरि शृगनि ते असूआ टरि आइ । । । एक समै शिव शैल सुता रति रीति रसै विपरीत वणाई । संभु डस्यौं अधरा अध तैं तिण पीर पीया हग नीर बहाइ । भाल के चंद परी वहुं बिंद धरी है कुरंग के शृग सखाइ ।। ऊठत ईस ही सीस धुण्यों ।
हरि शृंगनि ते अंसूआ ढरि आइ ॥१॥ वनमें मृग एक मृगीकै वियोगहि, - -
बैठि रह्यो निज ठौर निसाइ । तब ही दोइ पथक वात कर,
अधरात भइ हरिणी सिरि छाई आनन ऊरध के चितयौ,
मृग देखत व्योम प्रिया नहीं पाई। दुख तै मुख ऊरध रोवतही,
हरि शृगनित असूआ ढरि आई ॥२॥
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. समस्या-'पारसी मे मुख देखौ मुख ही मै आरसी' सुन्दर पलंग पर बैठौ है चतुरवर,
आग आइ वैठी प्रिया देव की कुआरसी। ताहि समै प्यारी प्रिया देखि आपु दार्पणक,
पीउ कु दिखावें भावें कीनै मनुहारसी। देखत हौं तेरौ मुख मैं तो अति पाउं सुख,
वीचि धरी आरसी तौ लागत है आर सी।