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________________ १२४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली समस्या-चरण देख चतुरा हसी इक दिन ख्याल हि अटकि, अरध निशी प्रीतम आयो । नींद माझि तिय निरखी, लेइ महावर पगि लायौ। वहुरि गयो वाजार, बहुत विधि देखी बाजी । पुनि आयौ परभात, रसिक कोतक चित्त राजी ।। निसनेह नाह तुम मोहि तजी, डुसक डुसक रोवइ डसी । अध दृष्टि इतइ अलतै अरूण, चरण देखि चतुरा हसी ॥१॥ समस्या-वामन के पगतै जु वची धरि जानत है विरलो जग कोऊ । धरि जानत है विरलो जग कोऊ। सूखत ना कवही सब ही रस, जागत है वरपा विनु जोऊ। जोर करै त लाइ नहिं जातु, है है पुनि नाहि गहै विधि दोऊ ।। पावत पार न को धर्मसी कहै, शेप उपारि सके नहीं सोऊ। - वामन के पगत जु वची धरि, जानत है विरलो जगि कोऊ ॥ १ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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