________________
प्रस्ताविक विविध संग्रह
- समस्या
सवैया इकतीसा द्वार कौं ने गहें मौन कहै मैं हुं नीलकंठ,
करहुँ मिगौर कला देखि जलधार कु । सूली न बढ़ाउ रीस चोर कु चढ़ाउ सीस,
ईस हुँ बढ्या दहै खाट के अधार कु । मैं तो हु ईशान सोहै प्राची उदीची के वीचि,
___ रुद्र हुँ कपाली जाहु प्रेत वन छार कु। लीनौ महाव्रती लील धारै क्युन धर्म शील, . गोरी ठग ठोरी करै- असे भरतार कु ॥ १ ॥
- सवैया इकतीसा वाकै तुम्ह जीवन हो, जीवन तुम्हारै वह,
दुहुँ एक जीउ देह देखवे कु द्वै धरी। देव प्रतिकूल होत, होत प्रतिकूल सब,
ऐसी अनुकूल ही सौं कैसी तुम्ह या करी ॥ आप रहै कहुं झूलि भामिनी वकत भूलि,
अजहुं न आए सो तौ मोही सु मन,धरी। तजि के अमूल तूल सूलज्यु विडारी फूल,
पीपर के पात पर च्यारो पात पापरी ॥१॥
--10: