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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
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दसमौ कलंकी नाम, है हैं कहुं ही न ठाम,
___ अजहुँ अधुरौं काम देखि भावी पर रे । भावी को करणहार, सो भी भम्यौ दस वार,
भावी न टरत भैया भावे कछु कर रे ॥ ३ ॥ यंत्र मंत्र तत्र जाल, झफि धु हुताश झाल,
पैठ धौ पताल वीचि, बैठ भावै घर रे। देसते विदेश जाहु, देखि मेख मीन राहु,
भटकी सवेर साझि, सिंधु माम तर रे। जैसे ही संयोग योग, भोग रोग सोग भावी,
धर्मसी सुवुद्धि धार, भावी लार नर रे। भावी कौ करणहार, सो भी भम्यौ दश वार,
भावी न टरत भैया, भावें कछु कररे ।।४।। फासी तें निकास ग्रीव, देत फाल पर्यों जाल,
जाल को जंजाल तोरि, पड्यौ आगि झर रे। जीवन जरी के जोर, जर्यो नाहि मर्यो रान,
___ वागुरीनि डार्यों वान टार्यो सोऊ सर रे। कहै धर्मसीह मृग, केते ही मिटाइ कष्ट,
भावी आगे पर्यो कूप माझि रह्यो मर रे। भावी को करणहार, सो भी भन्यो दस वार,
भावी न टरत भैया, भावै कछु कर रे ॥५॥