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प्रस्ताविक विविध सग्रह
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आणदरामजी नाजर की दी हुई समस्याओ की पूति - समस्या--भावी न टरे रे भैया भावे कछु कर रे
सौया इकतीसा अटक कटक विचि झटक निझाट मांकि,
___ एक ट्रक होत जात एक कु न डर रे । आधन मैं मुंग ऊरे करडू रहै हैं कोरे -
कीनो है, जतन किनि देखि भावी भर रे। करै एक करतार कहन को विवहार,
होत सब भावी लार, धर्मसीख धर रे । . भावी को करणहार सो भी भम्यो दश वार,
भावी न टरत भैया भाचे कछु कर रे ।। १॥ श्रवण भरें तो नीर, मार्यो दशरथ तीर,
ऐसी होनहार कौण मेटि सके पर रे। पाडव गये राज हार, कौरव भयो सहार,
द्रौपदी कुदृष्टि मार्यो कीचक किचर रे। केती धर्मसीख दइ, सीत विष वेलि वइ,
रावन न मानि लइ जावन कु घर रे । भावी कौ करनहार, सो भी भम्यौं दश वार,
भावी न टरत भैया, भावे कछ कर रे ॥२॥ मच्छ कच्छ होइ पी, वनको वराह भयौ,
नरसिंह एक पिंड दोइ रुप डर रे। वामन परशुराम राम कृष्ण बौद्ध रूप, .
केते ही चरित्र कीने एते रूप धर रे ।