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साच री बात सहु साभलौ सेवका. देव को सूर सम नही दूजौ ॥ १ ॥ सहस किरणा धरै हरै अधकार सही, नमैं प्रहसमै तियां कष्ट नावै ।। प्रगट परताप परता घणा पूरतो, अवर कुण अमर रवि गमर आवै ॥२॥ पडि रहै रात रा पखिया पथिया, हुवै दरसण सकी राह हींढे ।। सोम चढे सुरां सुरा असुरा सिहर, मिहर री मिहर सुर कवण मीठे ॥३॥ तपे जग ऊपरा जपै सहुँको तरणि, सुभा असुभां करम धरम साखी। रूड़ा ग्रह हुवइ सहु रूडै ग्रह राजवी, रूड़ा रजवट प्रगट रीति राखी ॥४॥
वर्षा वर्णन सबल मेंगल वादल तणा मज करि, गुहिर असमाण नीसाण गाजै। जंग जोरै करण काल रिपु जीपवा, आज कटकी करी इंदराजै ॥१॥ तीख करवाल विकराल वीजली तणी घोर माती घटा घर र घाले।। छोडि वासा घणी सोक छाटा तणी,