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प्रस्ताविक विविध संग्रह ११६
१४ शोभा-सवैया इकतीसा नपति' की शोमा नीति, गुनिन' की विनैं रीति, दपति के प्रीति जो निवाहे धुरि छेह की । ललना की शोभा लाज, वचन' की शोभा साच, बुद्धि शोभा कविताइ, पुत्र शोभा गेह की। गृह की हैं शोमा वित्त, मित्र की चितारै चित्त, सकज' की क्षमा यु, कला विचित्र देह की। द्विजन २ कीशोभाशांति, रवन' की शोभा कांति, साधुन ४ की शोभा धर्म, शील कै सनेह की ॥ १ ॥' '
वस्त्र शोभा-सवैया इकतीसा दूर तै पोसाकदार, देखियत सिरदार
देखिकै कुचील चीर है है कोऊ बपरा ॥ सुन्दर सुवेश जांण, ता को सहु वैन माने,
'बोलै जो दरिद्री तो लवार कहै लपरा ॥१॥ पीताबर देख के, समुद्र आप दिनी सुता,
दीनौ विष रूद्र कु विलोकी हाथ खपरा , धर्मसी कहै रे मीत, ऐसी है संसाररीति,
___ एक नूर आदमी हजार नूर कपरा ॥२॥
आशिकबाजी–सनैया इकतीसा देखिवैकु दौरिदौर, ठाढौ रहै ठौर ठौर,
बाध्योप्रीति रीति डोर किधौं नाथ्यौ बई है।