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प्रस्ताविक विविध संग्रह
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आप कहायौ इन्द धीरज मन माहे धरिजो,
बहु वरषा वावनो करिस सखरौधर्म करिज्यो। धन धान घमंड धीणा घणा, परजा बहु सुख पावसी। सहु थोक भला होसी सरस, उमगि वावनौ आवसी ।। ३ ॥ इकावन्ने आइ दुनी दुरभख डुलाइ,
कान्यौ सौ कूटि नै भीर वावनै भाइ। वावना वाहिरी त्रिपट पड़ीयो तेपन्नो,
दातारे तजि ददौ, निपट करि झाल्यो नन्नो । काढिस्याँ सोइ जिम तिम करें, मत चिंता आणइ मनइ सत झालि काल्हि सखरइ सुभिख, चहचंद होसी चोपनैं ॥४॥
कुस्त्री-सुस्त्री वर्णन सुकलीणी सुन्दरी मीठ वोली मतिवती,
चित चोखे अति चतुर जीह जीकार जपती। दातारणि दीपती पुन्य करती परकासू,
हस्तमुखी चित्त हरणी, सेवि संतोपे सासू ॥१॥ सुकलीण शील राखें सुजस, गहै लाज निज गेहनी । धरमसी जेण कीधो धरम, तिण गुणवत पामी गेहिनी ।। २ ॥ गुण हीणी गोमरी वडक बोली बहुरंगी,
चचल गति चोरती अधिक कुलटा ऊधंगी। सत विहुणी सुंबनी दूत जिती दुरभासू,
करणी घर में कलह, मूकतीजाय सासू । नाहरी नारी गूजे निपट, धूजे नित घर रो धणी । धरमसी जेण न कियौ धरम, पामी इण परि पापणी ॥२॥