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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली पुण्य पाप जल कथन
गोत ससरी। समै साली चित्रसाली ढाली पौडे के सुहाली सेज,
खंटाली कूटी में एक उखराली खाट । दिखाली विना ही भाली सुखाली दुखाली दसा,
नेह पाप पुण्य वाली विचाली निराट ॥शा सोना थाली माहे के आरोगै लाली दाली,
सुखी वीया के हथाली, जिमैं पीय बृक । एकां लील लाली लाली पाली, धंधाली जंजाली एक,
सड़ाली अढालीवार कमाइ सलूक ॥२॥ एका उन बाली छाली झाली न दीखें एकां,
धुंभाली क्रमाली हेकां दूसैं काली थाट । सदारा सुगाली एक दुकाली किताक दीसै,
वंसाली कमाइ चाली वाली जायें वाट ॥३॥ सम्भाली ल्यै वडा सोह, सुचाली कलत्त सुत्त,
स्या करै कलाली नाली अनाली कपूत । वाणी के रसाली वर्दै रिसाली एकां वात,
- कली कालि उजवालि आपरी करतूत ।।४।। दाहाली बाढाली बंधै रंढाली करतां दौड़,
मान नहीं मच्छराली, मझाली मरम्म । उद्दाली उलाली जन्नि, ताली दियं जायै आउ.
धारी हितवाली बात, संभाली धरम्म ॥५॥