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धर्मवद्धन ग्रन्थावली सार इतरी गरज परजरी अरज मुणि,
मेह करिमेह करि धणी मोटा। खेत कुम्हाइजै रेत उडै खरी, हेति हिनूआ गया चेत हारे। बैंत एहै धरौ नितरी वीनती, ध्रवौ करतार जलधार धार ।।२।। घणै धन होइ धन धान धीणा घणा,
पाल्हव भार अड्डार प्रामा । दरद मन रा मिट मिट जगरा दलिद,
जलद वरसाइ जगदीस झाझा ॥३॥ सफल करि आस अरदास धर्मदासरी,
तुरत तिण दीस जगदीस तृठा । हुआ उमाह उछाह सगला हुसी,
वाह हो वाह जलवाह बूठा ||४||
मेह ( वर्षा ) अमृतध्वनि जल थल महियल करि जलद, सहु जग होइ सुभक्ख । इक घण तो अण आवतें, दिखै खलक सु दुख ॥ १ ॥ दिखै खलक सु दुख खिजि खिजि,
सुख खिण नहीं दुख खिण खिण भुख । खल हल करव खद्धिय, चख खड विण पख खय पशु । कु ख खु ह वसि तुख खुटि खुटि, लुख खजि कजि । लख खिजमति अखं खलक अरज्ज ।।१।। जल थल महियला
दोहा जग सगलैं जगदीसरी, पूरण कृपा प्रसिद्ध । घण वरण्याहरख्या घण, सिद्ध धरि सहु रिद्ध ॥ १॥ .'