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___ ७२ धर्मवद्धन ग्रन्थावली चित्त धरज्यो धर्म चाह, यौवनीयौ ॥आकणी।। च्यार दिना री एह चटक छै नेट नहीं निरवाह जो यौवन रूप अथिर ए जाणौ, ज्यु वीजली जल वाह ॥जो॥२॥ भव इण जो तुकरिस कमाइ, (भलाइ) तौ सहु करिस्य सराह । बल चलिस्य नहीं आये बूढापा, रोक चंद ज्यु राह ॥जो॥३॥ पाको पीलो पान पीपल नो, थिर न रहै इक थाह जो०।। ज्यु आया त्यो सगला जास्, सिरखा रंक पतिसाह ॥जो॥४॥ रग पतंग तणे मत राचौ, काचौ घट कलि माहि ॥जोगा कहै धर्मसी भलपण करिवा, आदर करज्यो उमाह ।।जोकाशा
वैराग्य सझाय
करिज्यो मत अहंकार ए तन धन कारिमा,
हिव लही नर अवतार तु आले हारि मा। बावरीयउ नहीं हाथ जिणड इण वार मा,
माणस हुइ ढस मासे मारी भार मां ॥ १ ॥ आचरिज्यो उपगार तरुण वय आज री,
दिन दिन जास्ये देह जरा ये जाजरी। उठणन हुस्य आय काय किण काजरी,
सत्त नहीं नहीं स्वाद ज्यु बोदी वाजरी ॥२॥