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वैराग्य सझाय
७१ धन खाटन धपटै धरा, धंधै धमरोली,
- लेता देता लालचे लुब्धो लपचोली ॥४॥ मावीता ही ना मनै दुख द्य ढंदोली, '
गरदै न सरे का गरज नाणे विण नौली। परहा सडिया पान ज्यु तजीया तंबोली,
पूता नवा नव पान ज्यु पाले पपोली ॥५॥ . छहु रितु मद मातौ छिल, छवि छाका छोली,
अफल गमावै आउखो, ठाली ठग ठौली। उडिसी सास अचाणरौ डिगसी डमडोली,
आभ्रण सगला ले उरा कर काया अडोली ।६।। फूक्यो लकड़ फूस मे, होइ जाणे होली,
' विण झाने इण जीव री, वय सगली बोली। आदर पर उपगार हिव मन आणि इलोली,
सुखदाइ धर्म सीख सुणि तत लीजै तोली ॥ ७ ॥
वैराग्य सझाय ढाल-मुरली वजावै जी आवो प्यारो कान्हजोवनीयो जायै छै जी लेज्यो काइक लाह। परवत थी उतरतौ पाणी, कहो फिर चढ़े न काह जो० ॥१॥