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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
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नंदे माया मेलवी पिण नेट न टिक्की,
वाविसु क्षेत्रे ज्यु बले व रीत्ति बटक्की । श्रीधर्मसी कहै ज्ञान री अमृत गुटक्कि,
पीयां दुख जाये परा, सुख होई सटक्की ॥ ६ ॥
उपदेश लिहाणी मोह बसे केइ मानवी, माड्या घोलमघोल,
गमियो तर भव गाफिले, वयविन धरम विटोल १|| विण घरमे ते जीवड़ा, वय सर्व विटोली,
दस मासां थिति उदर री, बहु दुख से बोली। कोडि अठावीस कट तें खमिया इण खोली,
जनम्या दुख हुंता जिके, मूल्या भ्रम भोली ॥ २ ॥ मातां धोतां त्रमल, मुलरायो झोली,
हालरि हुलरावियौ, हीडोल हिचोली। बलि रमीयौ अठ दस बरस तु बालक टोली,
परणाची तु नइ प, दयिता हुइ दोली ॥३॥ मगर पचीसी मांणतो, करै काम कल्लोली.
गाहड मे वुमे घगु . गिलि मफरा गोली।