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वैराग्य सझाय ठगै काल आउ धन किम करि ठाहरै,
सिंहा री जिम छानो माखण साहरैं। कोइ जाणे नहीं ले जास्यै काह,
बैगा होइ चढो हिव किण हिक बाहरै ॥ ३ ॥ दोइ दोइ तरवार कटारि दावता,
जोरावर जोधा करै जे जावता । करता मौजा फौजा माहि फावता,
. सुभट तिकौ पिण काल न राख्या सावता ॥४॥ जड़ीयउ कुविसन जीवज्यु तणीए ताकड्डी,
फैलैं लोका माहि कुजसनी फाकडी। पापै तो पिण राचि रह्यौ हठ पाकड़ी,
पीती दूध बिलाड़ मिणे नहीं लाकड़ी ॥५॥ जीव जंजाले उलझ्यो ज्यु जोगी जटा,
पाचें पाम मझार ज्यु भोभर मे भटा । नाणे मन में धरम कर साटा नटा,
घेरी जास्य काल जेम वाउलि घटा ॥६॥ भव भव भमते परंवसि प्राणी बापडे,
__ कोडि सह्या जो कष्ट सूजी वसि कापडै । विलवे जीव घj ही तलफ तापडे,
आखर अपणी कीध कमाइ आपडे ॥ ७ ॥ परने वचे सचे पोते पापरो,
ए तु पोखे पिंड नहीं ते आपरौ ।