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सवासो सीख राजा मित्र म जाणे रंग, सुमाणस रो करिजे संग । काया रखत तपस्या कीजै, दान वलै धन सारु दीजै ॥१०॥ जोरावर सु मत रमे जुऔ, करिजे मत घर माहे कुऔ । वढा सुमत करजे वैर, गालि बोले तो ही न कहै गैर ॥११॥ नारि कुलक्षण नै धन नास, हलकौ पडीयो पाम्यो हास । अति पछतावै चित्त उदास, पच मे पाचे मत परकास ।।१२।। अमल न कीजै हो. अधिका, दरा करीजै घर मे विधिका । गरथ परायौ तुमत गरहे, निखरै पाडोसै पिण न रहे ॥१३।। दोड विढ़ता एकलौ मत देखे, धणीनै बुरौ म कहिजे घेखे । जूपे मत मोटा नी जोड़े, छोकरवाद री रामत छोड़े ॥१४॥ गाम चलता सुकन गिणीजे, हणतौ विण किणही न हणीजे । विण ग्रहण दीजे मत व्याज, निश्च वरस नो राखे नाज ॥१५॥ दुसमण ने दुसमण मत दाखै, रीस हुवै तोही मन राखे खत्त लिखावै मत विण साखे, माण पोता नौ गालि म नाखे ।१६। लाज न कीजै नामै लेखे, वद्धार परतीत विशेषे । धरिजे मेल ज गाम धणी सु, इकतारी कर अपणी स्त्री सु॥१७॥ चलता वसता सहु ची चीतारे, वाल्हा सैण मता वीसारे । जवाव करतौ रातै जागै, न हु सुइजै अगे नागे ॥१८॥ जे करतो हुवै चोरी जारी, उण सु अति नहीं कीजै यारी । वसत न लीजे चोरी वाली, लू वै मत तुनिबली डाली ॥१६॥ दे फुका म वुझावै दीवौ, पाणी अणछाण्या मत पीचौ । . छीक कीया कहिजे चिरजीवो, रुस्यौ मनावे फाटो सीवी ॥२०॥