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परिहा (अक्षर बतीसी) बतीसी हरखै हियो जिण नै देखि कहै ह हो । पूरव भव री प्रीति कइ तिणसें कही। हेत कहै धर्मसीह - छिपायौ ना छिपै । परिहा चुवक मिलिया लोह तुरत आवी चिपै ।। ३३ ॥ संवत सतरसार वरस पेंत्रीस (१७३५) में । जोड़ी अखर बतीसी श्री जोर में । विजयहरष जसवास सुलोका मे लहै । परिहा करि कंठ प्रस्तावी, धर्मसी जे कहै ।। ३४ ॥