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धर्मवद्धन ग्रन्थावली
गृह प्रवेश निषेध लपट तजि प्रौलीयौ निगुण प्रभु नीलज नारी । चौकीदार ज चोर, जोर वर जोध जुआरी । ठिक विण वाभण ठोठ भ्रमी मित्र कायथ भोली। वलि रीसट वाणीयो, दूत बोले डमडोलौ । विन सिद्धि वंद जोसी जडौ, धर्मसीख विण धारण । मानि जो बैंण आणौं मता, बारै ही घर बारणें ॥ ५५ ॥ क्षमावत सौ खरो, सकज हुइ गाल्या सासैं । . नेही तेहिज नेट, बिछड़या मूरै वासैं । पडित तेहिजे परखि, शास्त्र अरथ समझा। ज्ञानी तेहिज गिर्णी, वस्तु पहिली ज बताव । सांकड़े आइ पंडिया सही, सैंण सोइ राखै सरम । दातार छतें ऊंतर न द्य, धीर सोइ न तजें धरम ॥ ५६ ॥
सतरे से सवत, वरस तेपनौ वखाणाँ । श्रावण सुदि तेरसैं, जोग तिथि शुभ दिन जाणा । राजै बीकानेर, सूरि जिणचन्द सवाइ । भट्टारक बडभाग, गच्छ खरतर गरवाइ । श्री विजयहर्ष वाचक सुगुरु पाठक श्री धर्मसी पवर । बावनी एह प्रस्ताव बहु, कीधी छप्पय कवित्त कर ।। ५७ ।।